अमोल मालुसरे – मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ ग्राम न्यायालय अधिनियम, 1996 (क्रमांक 26 सन 1997)* के अधीन धारा 16 के अनुसार ग्राम न्यायालय की अधिकारिता कितनी होगी, क्या ग्राम न्यायालय को सिविल न्यायालय समझा जाएगा ?
उत्तर / जानकारी – मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ ग्राम न्यायालय अधिनियम, 1996 (क्रमांक 26 सन 1997)* के अधीन धारा 16 के अनुसार –
धारा 16. ग्राम न्यायालय की अधिकारिता-
(1) सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का सं 5) या दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का सं 2) या म. प. भू- राजस्व संहिता, 1959 (क्र. 20 सन. 1959) में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी ग्राम न्यायालय को-
एक) एक हजार रूपये से अनधिक ऐसे धन की वसूली के लिये किसी वाद की सूनवाई तथा उसे अवधारित करने और उसके निष्पादन तथा उससे उदभूत होने वाली अन्य प्रकीर्ण कार्यवाहियाँ करने की अनन्य अधिकारिता होगी तथा उस प्रयोजन के लिये ग्राम न्यायालय, सिविल न्यायालय समझा जाएगा।
दो) क) भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (1860 का सं 45) की धारा 160, 172, 174, 175, 178, 179, 180, 269, 277, 279, 283, 289, 290, 294, 323, 334, 336, 341, 352, 358, 374, 379, 411, 426, 428, 447, 448, 506 (प्रथम भाग),509 तथा 510;
ख) पशु अतिचार अधिनियम, 1871(1871 का सं 1);
ग) म.प. किशोर धूम्रपान अधिनियम, 1929, (क्र. 7 सन 1929); और
घ ) सार्वजनिक द्युत अधिनियम, 1867 (1867 का सं 3) की धारा 13 के अधीन अपराधों की जाँच तथा उनका विचारण करने की अनन्य अधिकारिता होगी तथा उस प्रयोजन के लिए ग्राम न्यायालय दण्ड न्यायालय समझा जाएगा।
तीन) म.प्र. भू- राजस्व संहिता, 1959 (क्रं. 20 सन 1959) की धारा 248 तथा 250 के अधीन मामलों की सुनवाई तथा उसका निपटारा करने की अनन्य अधिकारिता होगी तथा उस प्रयोजन के लिये ग्राम न्यायालय तहसीलदार का न्यायालय समझा जाएगा।
परन्तु ग्राम न्यायालय पाँच सौ रूपये से अधिक का जुर्माना अधिरोपित करने के लिये सक्षम नहीं होगा किन्तु यदि किसी मामले में उसका यह विचार है कि मामले की परिस्थितियाँ ऐसी है जिनमें और अधिक जुर्माना अधिरोपित किये जाने के लिये समुचित आधार है तो वह मामले को उपखण्ड अधिकारी को निर्दिष्ट कर सकेगा जो संबध्द पक्षकारों को सुनवाई का अवसर देने के पश्चात जुर्माने के संबध्द में ऐसे आदेश पारित कर सकेगा जैसा कि वह उचित समझे।
2) उपधारा 1 में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी ग्राम न्यायालय-
एक) निम्नलिखित वादों का विचारण नहीं करेगा-
क) जो भागीदारी लेखा के अतिशेष के लिये है;
ख) जो किसी निर्वसीयतता के अधीन अंश या अंश के भाग के लिये या किसी बीलके अधीन किसी वसीयत संपदा के लिए यह वसीयत संपदा के भाग के लिए है;
ग) जो किसी स्थावर संपत्ती के किराए की वसूली के लिए है.
घ) जो किसी बंधक के मामले में पुरोबंध, विक्रय या मोचन के लिये या किसी स्थावर संपत्ति में किसी अन्य अधिकार या उसमें हित की घोषणा के लिये है;
ड़) जो अवयस्कों या विकृतचिंत वाले व्यक्तियों द्वारा या उनके विरूद्ध है;
च) जो केन्द्र सरकार या राज्य सरकार के सेवक या किसी स्थानीय प्राधिकारी या किसी कानूनी निकाय या किसी ऐसे लोक सेवक द्वारा उसके विरूद्ध जो अपनी पदीय हैसियत में कार्य कर रहा है या जिसका उस प्रकार कार्य करना तात्पर्यित है;
छ) जिसका किसी सिविल न्यायालय द्वारा सँज्ञान किया जाना तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन वर्जित है।
दो) निम्नलिखित अपराधों का संज्ञान नहीं करेगा-
क) ऐसे मामलों में किसी अपराध का जहाँ अभियुक्त पूर्व दोषसिध्द है;
ख) भारतीय दण्ड संहीता की धारा 379, 411 और 428 के अधीन ऐसे अपराधों का जहाँ, यथास्थिति, संपत्ति या पशु का मुल्य 500 रूपये से अधिक है;
ग) भारतीय दण्ड संहीता की धारा 172, 174, 175, 178, 179 और 180 के अधीन अपराधों का, जब तक कि ये अपराध ग्राम न्यायालय के संबंध में न किये गये हों;
घ ) ऐसे मामलों में किसी अपराध का जहाँ शिकायतकर्ता या अभियुक्त लोक सेवक है या ग्राम न्यायालय का सदस्य है।
टिप्पणी-
धारा 16- ग्राम न्यायालय, तहसीलदार के न्यायालय के अनुरूप ही न्यायालय समझा जावेगा तथा उसे 500 रूपये तक जुर्माना आरोपित करने का अधिकार होगा। अधिक जुर्माना आरोपन की स्थिति में उपखंण्ड अधिकारी को मामला निर्दिष्ट होगा।
ग्राम न्यायालय भारतीय दण्ड संहीता , 1860 के अधीन दण्ड न्यायालय समझा जावेगा, जिसे निम्न अपराधों की जांच एवं विचारण करने की अनन्य अधिकारिता होगी-
धारा 160- दंगा करना
धारा 172- लोक सेवक द्वारा निकाले गगये समन्स की तामिली से की गई अन्य कार्यवाही से बचने के लिए फरार हो जाना। यदि वह समन्स या सूचना न्यायालय में वैयक्तिक हाजरी आदि अपेक्षित करती है।
धारा 174- किसी स्थान पर स्वंय या अभिकर्ता द्वारा हाजिर होने का वैध आदेश न मानना, वहाँ से प्राधिकार के बिना चला जाना। यदि आदेश न्यायालय में वैयक्तिक हाजरी आदि अपेक्षित करता है।
धारा 175- दस्तावेज पेश करने या परिदत्त करने के लिए वैध रूपसे आबध्द व्यक्ति द्वारा लोक सेवक को ऐसी दस्तावेज पेश करने का आशय सहित लोप जानबूझकर पेश नहीं करना। यदि उस दस्तावेज या न्यायालय में पेश किया जाना या परिदत्त किया जाना अपेक्षित है।
धारा 178- शपथ लेने से इन्कार करना- जब लोक सेवक दवारा वह शपथ लेने के लिए सम्यक रूप से अपेक्षित किया जाता है।
धारा 179- सत्य कथन करने के लिए वैध रूप से आबध्द होते हुए प्रश्नों का उत्तर देने से इन्कार करना।
धारा 180- लोक सेवक से किये गये कथन पर हस्ताक्षर करने से इन्कार करना जब वह वैसा करने के लिये वैध रूप से अपेक्षित है।
धारा 269- (भारतीय दण्ड संहीता, 1860 के अध्याय 14 के अधीन लोक स्वास्थ्य, क्षेम, सुविधा, शिष्टता और सदाचार पर प्रभाव डालने वाले अपराध) उपेक्षा से कोई ऐसा कार्य करना जिसके बारे में ज्ञात है कि उससे जीवन संकटपूर्ण किसी रोग का संक्रमण फैलना संभाव्य है।
धारा 277- लोक जल स्त्रोत या जलाशय का जल कलुषित करना।
धारा 279- लोक मार्ग पर ऐसे उतावलेपन या उपेक्षा से वाहन चलाना या सवार होकर हांकना जिससे मानव जीवन संकटापन्न हो जाय, आदि।
धारा 283- किसी लोक मार्ग या नौ परिवहन पथ पर संकट, बाधा या क्षति कारित करना।
धारा 289- अपने कब्जे में के किसी जीव- जन्तु के संबंध में ऐसी व्यवस्था करने का किसी व्यक्तिद्वारा लोप जिससे ऐसे जीव-जन्तु से मानव जीवन को संकट या घोर उपहति के संकट से बचाव हो।
धारा 290- लोक न्युसेन्स करना।
धारा 294- अश्लील गाने।
धारा 323- स्वेछ्या उपहति कारित करने के लिए दण्ड।
धारा 334- प्रकोपन पर स्वेच्छता उपहति करित करना।
धारा 336- कार्य जिससे दूसरे का जीवन या वैयक्तिक क्षेम संकटापन्न हो।
धारा 341- संदोष अवरोध के लिए दण्ड।
धारा 352- गंभीर प्रकोपन होने से अन्यथा हमला करने या आपराधिक बल प्रयोग करने के लिए दण्ड।
धारा 358- गंभीर प्रकोपन मिलने पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग।
धारा 374- विधि विरूद्ध अनिवार्य श्रम।
धारा 379- चोरी के लिए दण्ड।
धारा 411- चुराई गई संपत्ति को बेईमानी से प्राप्त करना।
धारा 426- रिष्टि के लिए दण्ड।
धारा 428- दस रूपये मूल्य के जीव – जन्तु को वध करने या उसे विकलांग करने के द्वारा रिष्टि।
धारा 447- आपराधिक अतिचार के लिए दण्ड।
धारा 448- गृह अतिचार के लिए दण्ड।
धारा 506- प्रथम भाग आपराधिक अभिन्यास का अपराध जिसमें धमकी, मृत्यु या घोर उपहति कारिता करने की या अग्नि द्वारा किसी संपत्ति का नाश कारित करने की नहीं हो यह दूसरे भाग में।
धारा 509 – शब्द, अंग विक्षेप या कार्य जो किसी स्त्री की लज्जा का अनादर करने के लिये आशयित है।
धारा 510- नशे में मत्त व्यक्ति द्वारा मत्तता की हालत में किसी सार्वजनिक स्थान में या ऐ स्थान में जहाँ उसका प्रवेश करना अतिचार हो, अवचार।
धारा 16 (1) (दो) (ख) – पशु अतिचार अधिनियम (क्र. 1/ 1871) के अधीन अपराध।
मध्यप्रदेश किशोर धूम्रपान अधिनियम (क्र. 7/ 1929) के अधीन अपराध।
सार्वजनिक जुआ अधिनियम (क्र. 3/ 1867) की धारा 13 के अधीन अपराध।
ग्राम न्यायालय को उक्त धारा के अधीन एक हजार रूपये से अधिक नहीं की वसूली के लिये किसी दावे की सुनवाई तथा उसे अवधारित करने और उसके निष्पादन तथा उससे उत्पन्न विविध कार्यवाहियाँ करने की अनन्य अधिकारिता होगी तथा उस प्रयोजन के लिए ग्राम न्यायालय सिविल न्यायालय समझा जावेगा।
वे मामले जिनमें ग्राम न्यायालय को निम्नलिखित दावों में विचारण का अधिकार नहीं रहेगा – धारा 16 (2) (एक)-
अ) जो भागीदारी लेखा के अतिशेष के लिए है।
ब) जो बिना किसी वसीयत के अधीन किसी अंश या हिस्से के भाग के लिये है या जो किसी वसीयत के अधीन किसी वसीयत संपदा के लिये या उसके भाग के लिए है।
स) जो किसी स्थायी संपत्ति के किराये की वसूली के लिये दावा है।
द) जो किसी बंधक के मामले में पुरोबध, विक्रय या मोचन के लिए या किसी स्थायी संपत्ति में किसी अन्य अधिकार या उसमें हित की घोषणा के लिए दावा है।
ड़) अवयस्कों या विकृतचित्त वाले व्यक्तियों द्वारा किये जाने वाले दावे या ऐसे व्यक्तियों के विरूद्ध किये जाने वाले दावे।
क) जो दावे केन्द्र सरकार या राज्य सरकार के सेवक के या किसी स्थानीय प्राधिकारी या किसी कानूनी निकाय या किसी ऐसे लोक सेवक द्वारा या उसके विरूद्ध जो अपने पदीय हैसियत में कार्य कर रहा है या जिसका उस प्रकार कार्य करना तात्पर्यित है।
ख) ऐसा दावा जिसका किसी सिविल न्यायालय द्वारा संज्ञान किया जाना तत्स्मय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन वर्जित है।
ग्राम न्यायालय निम्नलिखित अपराधों का संज्ञान नहीं करेगा – धारा 16 (2) (दो)-
(अ) ऐसे व्यक्ति के विरूद्ध अपराध का संज्ञान जो किसी अपराध का पूर्व में दोषसिध्द हो चुका है, अर्थात पूर्व में सजायाप्ता।
ब) धारा 379, 411, 428 – भारतीय दण्ड संहिता, 1860 के अधीन यथास्थिति अपराधों की संपत्ति का या पशु का मूल्य जहाँ 500 रू. से अधिक है।
स) धारा 172, 174, 175, 178, 179 एवं 180 – भारतीय दण्ड संहिता, 1860 के अधीन अपराध, यदि अपराध ग्राम न्यायालय के संबंध में नहीं किये गये है तो ग्राम न्यायालय संस्थान नहीं करेगा।
जहाँ किसी अपराध के लिए शिकायतकर्ता लोक सेवक है या अभियुक्त लोक सेवक है या ग्राम न्यायालय या सदस्य है तब संज्ञान नहीं करेगा।